घरवातावरणहृदय अद्भुत कार्य कर सकता है

माइकल एच रिचर्डसन परवाह करने की अर्थात लोगों और चीज़ों दोनों ‘के बारे में’ और दोनों ‘की’ परवाह करने के विचार के बारे में जानकारी दे रहे हैं। वे हमें अपनी व्यक्तिगत समस्याओं और मानवता के सामने खड़े बड़े-बड़े सवालों के हल खोजने के लिए अपने हृदय को सुनने के लिए कहते हैं।

‘परवाह’ शब्द के बहुत दिलचस्प पहलू हैं। हम किसी व्यक्ति या वस्तु ‘के बारे में’ परवाह कर सकते हैं तथा दूसरों ‘की’ और अपनी भी परवाह कर सकते हैं। इनमें से एक का संबंध भावना के आंतरिक संसार से है जबकि दूसरे का संबंध बाह्य संसार से है जो इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या करते हैं। ऐसा लगता है कि परवाह का हमारा आंतरिक तंत्र हमारे भीतर किसी चीज़ को स्वतंत्रतापूर्वक तरंगित होने देता है। वह है कमज़ोरी। संभवतः हम लोगों की परवाह करने के लिए इसलिए बाध्य हो जाते हैं क्योंकि हम उनमें कुछ कमज़ोरी महसूस करते हैं। लेकिन किसी की परवाह करने की बाह्य प्रक्रिया में कुछ करने की और कभी-कभी खतरे उठाने की ज़रूरत पड़ती है। परवाह के इन दो पहलुओं के बीच हमारा शरीर एक सेतु का कार्य करता है। परवाह करने वाला यह शरीर हमारे समाज की आधारभूत संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो तनावग्रस्त है और जिसे सुधार की ज़रूरत है।

इक्कीसवीं सदी की शुरुआत के कुछ वर्षों तक मैंने इडाहो में, जहाँ मैं रहता था, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर कुछ प्रयास किए। मैंने एक छोटी सी संस्था शुरू की जिसका उद्देश्य था लोगों को कार्बन, अग्नि, विद्युत चालित वाहनों आदि के बारे में जानकारी देना और इस विषय में निरंतर प्रगति करने के लिए कानून बनवाना। हमें कुछ सफलताएँ मिलीं और काम थोड़ा-बहुत आगे भी बढ़ा। लेकिन मेरे कुछ पूर्वानुमान, जिनके आधार पर यह संस्था स्थापित की गई थी, रेत के दलदल की तरह साबित हुए। हमारा कार्य रुक गया| इसलिए मुझे इस पूरी परिस्थिति पर पुनर्विचार करना पड़ा। मैंने सोचा था कि लोग परवाह कर सकते हैं और करेंगे भी। 

हमने एक कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें पाँच स्थानीय वैज्ञानिकों ने, जो जलवायु संबंधी समस्या से परिचित थे, प्रमुख व्यापारियों और विधायकों को संबोधित किया। प्रत्येक विशेषज्ञ ने (जिनमें से दो अग्नि-विज्ञानी, दो जल-विज्ञानी और एक नदी तथा मत्स्य विशेषज्ञ थे) इसके पहले मुझसे अलग से मिलने पर भविष्य के बारे में गहरी चिंताएँ प्रकट की थीं। उन सभी में पृथ्वी के प्रति बहुत परवाह दिखाई पड़ रही थी। मेरा विचार था कि इन वैज्ञानिकों की बातों का स्थानीय स्तर पर नीति-निर्माण के दृष्टिकोण पर असर पड़ेगा। इसलिए मैंने उन्हें आम लोगों के लिए 10 मिनट की वार्ता तैयार करने को कहा जो मुझे बताई गई उनकी चिंताओं को व्यक्त कर सके। श्रोताओं में पचास नीति-निर्माता, पादरी, प्रमुख व्यापारी और इडाहो के अन्य प्रमुख विचारक थे। यह कार्यक्रम आम जनता के लिए नहीं था तथा इसमें मीडिया के भी लोग नहीं थे ताकि सभी खुलकर बात कर सकें।

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जैसे-जैसे वार्ताएँ आगे बढ़ीं, मैं बहुत हैरान हुआ। पाँच में से चार वक्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के बारे में बहुत ही कम बोला और अपनी चिंता व्यक्त करने में भी असफल रहे। एक ने तो मुख्यतः अपनी प्रयोगशाला का प्रचार किया। आश्चर्यजनक रूप से जहाँ उनकी राय एक परिवर्तन ला सकती थी, वहीं पर वे उसे समझा पाने से चूक गए। उनमें से केवल एक ने अपनी भावपूर्ण आवाज़ में पहाड़ों पर बर्फ़बारी के बारे में अपना ईमानदार मत प्रस्तुत किया क्योंकि उससे हमारा स्की कारोबार प्रभावित होता है। मैं उस कार्टून जानवर की तरह महसूस कर रहा था जो चट्टान के किनारे पर आगे बढ़ गया और हवा में झूल रहा था। इन लोगों को जलवायु ‘की’ परवाह थी लेकिन जब लोगों के सामने जलवायु ‘के बारे में परवाह की बात करने का समय आया तो उनके भीतर कोई अवरोध आ गया।

हम अकेले में बड़ी आसानी से बता सकते हैं कि हम किस तरह किसी चीज़ ‘के बारे में’ परवाह करते हैं लेकिन सार्वजनिक रूप से (और इडाहो में यदि आप जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करने वाले वैज्ञानिक हैं) जहाँ हम अक्सर परवाह करते हैं वहाँ उसके बारे में कुछ बोलने को लेकर बात बिलकुल अलग होती है। किसी ‘की’ परवाह करना आंतरिक और बाहरी दुनिया के एकीकरण और भय से स्वतंत्रता पर निर्भर करता है। इस घटना के बाद मुझे समझ में आया कि जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं को अपने अनुमान से बिलकुल अलग स्तर पर संबोधित करने की आवश्यकता है।

ऐसा लग सकता है कि जिन बड़ी-बड़ी समस्याओं का हम सामना करते हैं, जैसे जलवायु संकट, नस्लवाद, मानवाधिकार, बीमारियाँ, आर्थिक असमानता इत्यादि, मुख्यतः तकनीकी, राजनीतिक या पर्यावरण संबंधी हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अगर हम पर्याप्त सौर तथा पवन ऊर्जा के संयंत्र लगा लें, पर्याप्त लोगों का टीकाकरण कर लें, पर्याप्त वर्षा वनों को बहाल कर लें या लोगों को शिक्षित कर लें तो इससे समस्याएँ हल हो जाएँगी। अगर कार्यालयों में हम सही लोगों को नियुक्त करें तो इससे अन्य मामलों में प्रगति होगी। तकनीकें और विज्ञान आधारित नीतियाँ सुगम और उचित लगती हैं।

लेकिन प्रगति के भौतिक स्वरूप भ्रामक हैं। हालाँकि प्रदूषणहीन तकनीकें अत्यावश्यक हैं, अच्छी नीतियाँ ज़रूरी हैं और कार्यालयों में समझदार लोगों का होना बहुत बढ़िया है, फिर भी मनुष्य की समस्याएँ कभी भी ज्ञान या तकनीक की कमी के कारण नहीं रही हैं। दशकों से हम जानते हैं कि कार्बन डाई-आक्साइड और मीथेन जैसी गैसें पृथ्वी को नुकसान पहुँचाती हैं| फिर भी समाज में कुछ ताकतों ने सामूहिक कार्यवाही को बाधित कर दिया है। दशकों से हमारे पास हर इंसान को खिलाने के लिए और हर एक बच्चे को अच्छी शिक्षा देने के लिए आवश्यक संसाधन और क्षमता है। फिर भी आज करोड़ों बच्चे भयंकर गरीबी में रहने के लिए मजबूर हैं।

हम जो कुछ भी झेल रहे हैं वह तकनीकी समस्या नहीं है। जितनी भी प्रगति हमने देखी है, वह इसलिए है कि लोगों ने परवाह करने का कोई तरीका खोज लिया है। यह मानवीय हृदय की ग्रहणशीलता ही है जिसने नीतियों और तकनीकों को अपनाने के तरीके को निर्धारित व सीमित किया है।

जब हमारी प्रजाति के जीवित रहने की बात आती है तो मेरा मानना है कि हमारी सबसे महत्वपूर्ण दीर्घकालिक परियोजना व कार्यनीति मानव-हृदय को खोलने और उसका उपचार करने की होनी चाहिए।


हृदय को आपसी संबंधों से और प्रकृति एवं अन्य जीवों के साथ संबंधों से उन 
तरीकों से मज़बूती और स्पष्टता मिलती है जिन्हें व्यक्त कर पाना लगभग असंभव है।


जिसे हम ‘हृदय’ कहते हैं, उसके बारे में नियमों और तकनीकों द्वारा बात नहीं की जा सकती। हृदय को आपसी संबंधों से और प्रकृति एवं अन्य जीवों के साथ संबंधों से उन तरीकों से मज़बूती और स्पष्टता मिलती है जिन्हें व्यक्त कर पाना लगभग असंभव है। 

फिर हृदय का एक और घटक है जो कुछ कम स्पष्ट है, वह है एकांत और मौन। आज आप समाज में जहाँ भी जाएँ संगीत बज रहा होता है, मानो कोई भी अकेला नहीं रह सकता। अंधकारमय जगहें कम होती जा रही हैं। हम बच्चों को ऐसा कोई यादगार अनुभव नहीं देते हैं जिसमें एकांत हो यानी ऐसा अवसर जिसमें उन्हें दबावों और मानदंडों से मुक्त प्राकृतिक संसार का सामना करने का मौका मिले। केवल एकांत में ही हमें हृदय को जानने का मौका मिलता है। एकांत से हममें ईमानदारी आती है जिससे हम ऐसा कुछ कह व कर पाते हैं जो शायद बहुत लोकप्रिय न हो लेकिन वह प्रेम और सहयोग के आधार पर निर्मित होता है। प्रेम और एकांत में स्थित व्यक्ति में ही बाहरी स्तर पर परवाह करने की और सबके सामने अपनी कमज़ोरियों को प्रकट कर सकने की क्षमता होती है। 

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जब हृदय एक स्वतंत्र स्रोत से प्रकाशित होता है तथा किसी भी शर्त पर आधारित नहीं होता है तब जीवन अत्यंत आनंददायक, सरल और भौतिक रूप से हल्का हो जाता है। ऐसे में हमें कुछ ही चीज़ों की आवश्यकता होती है और पेड़ों, पक्षियों, पानी व प्रकाश जैसी सामान्य वस्तुओं की उपस्थिति में पर्याप्त सुख होता है। 

जो लोग स्वयं से गहराई से परिचित हैं, ऐसे स्वतंत्र और ग्रहणशील लोगों की ऊर्जा उनकी उपस्थिति में महसूस होती है। लेकिन वीडियो के माध्यम से यह उतनी अच्छी तरह अभिव्यक्त नहीं हो पाती। उनके पास जो गुण है, वह अमूर्त, अदृश्य और व्यक्त करने में कठिन होता है। हमारे वर्तमान समाज में अभिभूत करने वाली परिस्थितियों में पले-बढ़े किसी व्यक्ति के लिए अस्तित्व की ऐसी अवस्था का विचार- जिसमें व्यक्ति इच्छाओं से मुक्त होने पर भी बहुत परवाह करता है- या तो व्यर्थ लगता है या फिर असंभव लगता है।

हमारी बेहतरीन आध्यात्मिक परंपराएँ हृदय का उपचार व उसे शुद्ध करने की अनिवार्यता को समझती हैं। लेकिन धर्म ऐसी कार्य-प्रणालियाँ बन गए हैं जिनमें केवल लिखी हुई और मूर्त चीज़ों को ही शामिल किया जाता है। और विज्ञान केवल उन्हीं बातों के आधार पर चलता है जिन्हें सिद्ध किया जा सकता है। हम किताबों और दोहराए गए प्रयोगों के परिणामों के आधार पर बात न करके आत्म-खोज से मिली अंतर्दृष्टि और प्रज्ञान से बात करने में कितने सहज हैं जिसे हम प्रकृति में, केवल अपने अस्तित्व में निहित स्रोत से प्राप्त करते हैं?

यह एक नाज़ुक परियोजना है। इसके लिए शायद किसी ऐसे चाप की कल्पना करना सहायक होगा जो एक हज़ार वर्ष तक बना रहेगा। निश्चित ही महासागरों और अमेज़न जैसे उपचारक पारिस्थितिक तंत्र को उस तरह की समय सीमा की आवश्यकता होगी। प्रेम के प्रत्यक्ष कार्यों की सहायता से संसार को बदलना बहुत ही धीमा कार्य है। प्रगति चुपचाप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से दूर उन कार्यों की सहायता से होती है जिनके लिए कोई ध्यान या इनाम की अपेक्षा नहीं की जाती। जब हम एक चुनौतीपूर्ण दुनिया में दृढ़ रहने के बारे में बात करते हैं तब शारीरिक रूप से जीवित रहने की आवश्यकता होती है। लेकिन सच्ची दृढ़ता में एक ऐसा हृदय शामिल होता है जो खतरे, चोट, थकावट, अपमान, आपदा, विफलता और हिंसा के बावजूद सभी प्राणियों के प्रति स्पष्ट और दयालु रहता है। इस तरह हमारे पास स्वयं ही हिंसा का विरोध करने का एक तरीका होता है।

हृदय केंद्रित विचारों, शब्दों और कृत्यों - परवाह की भावना के आधार पर किए जाने वाले परवाह भरे कार्य - के प्रभाव दूर तक और तेज़ी से फैलते हैं। जिस प्रकार आवश्यक मदद मिलने पर पारिस्थितिकी तंत्र बहुत जल्दी ठीक होने लगते हैं, (मेरी कल्पना में नदियों की पारिस्थितिकी में ऊदबिलावों को फिर से लाना, कई अन्य ऐसे प्राणियों और तंत्रों को पुनर्जीवित करना है) उसी प्रकार हृदय से किए गए कार्यों में आश्चर्यजनक तेज़ी के साथ अद्भुत परिणाम पाने की क्षमता है। 

कलाकृति - अनन्या पटेल 


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माइकल एच. रिचर्डसन

माइकल एच. रिचर्डसन

माइकल अमेरिका के वर्मोंट के एक छोटे से शहर में पले-बढ़े। ललित कला का अध्ययन करने के बाद उन्होंने उत्कृष्ट फ़र्नीचर बनाया, फिर जिल्दसाज़ और ग्राफ़िक डिज़ाइनर के रूप में काम किया। उन्हों... और पढ़ें

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